चाहतें भी थोड़ी-सी
गगन की उड़ान है
छोटा-सा मकान है
चाहतें भी छोटी ही
बादलों में स्थान है।
बचपन की बातें
हवा में उड़ते धागों को पकड़ने के लिए भागा करते थे
पकड़-पकड़ कर बोतलों में एकत्र कर लिया करते थे
मन में डर रहता था कि कहीं काले-काले कीट तो नहीं
बाद में इनका गुच्छा बनाकर हवा में उड़ा दिया करते थे।
समाचारों में बहुत शोर हुआ
गली में कुत्ता रोया, समाचारों में बहुत शोर हुआ
बिल्ली ने चूहा खाया, समाचारों में बहुत शोर हुआ
शेर दहाड़ा जंगल में, सुना, न देखा, बस बात हुई
कौए न की काॅं काॅं, समाचारों में बहुत शोर हुआ
कभी झड़ी, कभी धूप
कभी-कभी यूॅं ही सोचने में दिन निकल जाता है
काम बहुत, पर मन नहीं लगता अकेलापन भाता है
ये सूनी-सूनी राहें, झरते पत्ते, कांटों की आहट
कभी झड़ी, कभी धूप, कहाॅं समझ में कुछ आता है
अपने पर विश्वास बनाये रखना
ढाल नहीं, तलवार की धार बनाये रखना
माॅंगना मत सुरक्षा, हाथ में तलवार रखना
आॅंख खुली रहे, भरोसा अपने आप पर हो
हारना नहीं, अपने पर विश्वास बनाये रखना
अच्छे हो तुम
वैसे तो बहुत अच्छे हो तुम
बस बातों के कच्चे हो तुम
काम कोई पूरा करते नहीं
माना बुद्धि में बच्चे हो तुम
प्यार के नाम पर दिखावा
अटूट बन्धन बस स्वार्थ के ही होते हैं इस संसार में
कोई न अपना, कोई न सपना, धोखा है इस संसार में
जिन्हें अपना समझा वे ही छोड़कर चले गये दुःख में
प्यार के नाम पर बस दिखावा ही है इस संसार में
ज़िन्दगी किसी उत्सव से कम नहीं
ज़िन्दगी किसी उत्सव से कम नहीं बस मनाने की बात है
ज़िन्दगी किसी उपहार से कम नहीं बस समझने की बात है
कुछ नाराज़गियों, निराशाओं से घिरे हम समझ नही पाते
ज़िन्दगी किसी प्रतिदान से कम नहीं बस पाने की बात है
अधूरी हसरतें
कितना भी मिल जाये पर नहीं लगता है कि पूरी हो रही हैं हसरतें
जीवन बीत जाता है पर सदैव यही लगता है अधूरी रही हैं हसरतें
औरों को देख-देख मन उलझता है, सुलझता है और सुलगता है
ईर्ष्या, द्वेष, अहंकार में उलझकर अक्सर बिखर जाती हैं हसरतें
लाभ के पीछे दौड़ रहे
छेड़-छेड़ की आदत बुरी कौन समझाए किसको
सब अपने हित में लगे रहें कौन हटाए किसको
पर्वत रौंद दिये, वृक्ष खो गये, पशु-पक्षी रहे नहीं
लाभ के पीछे दौड़ रहे, कौन रोक सका किसको
अधिकार माॅंगे
कहने को कोई कुछ भी कहे, कर्म प्रतिफल माॅंगे
धन, परिश्रम, समय फ़लित, उसका अधिकार माॅंगे
कर्म कर फल की चिन्ता न कर, बस कहने की बात
मेरे परिश्रम का फल कोई और ले, तब न्याय माॅंगें।
सपने थे अपने थे
कागज की कश्ती में कुछ सपने थे कुछ अपने थे कुछ सच्चे थे कुछ झूठे थे
कुछ डोले थे कुछ उलझ गये कुछ बिखर गये, कुछ निखर गये कुछ रूठे थे
कुछ पानी में छोड़ दिये, कुछ को गठरी में बांध लिया, कुछ आॅंखों में रह गये
हिचकोले खाती कश्ती में तिरते-तिरते समझा जो भी थे, सब अपने थे, मीठे थे
खुशियों की चादर ओढ़े
खुशियों की चादर ओढ़े
नयनों से कुछ तो बोले
द्वार खड़ी राह देखूॅं मैं
बिंदी, कंगन छन-छन बोले
जीकर देख ले मना Try To Live
भावनाओं का रस कहीं सूख रहा
गन्ने की निपोरी सा निचुड़ रहा
मन भरकर जीकर देख ले मना
जीवन का पात्र यूॅं है रीत रहा
घोंसले में जा आराम कर
छोटी-छोटी बातों पर न चिल्लाया कर
मीठा आम आया है खाकर आराम कर
झुलसाती गर्मी से बचकर रहना प्यारे
पानी पीकर घोंसले में जा, आराम कर
रंग-बिरंगी दुनिया
रंग-बिरंगी दुनिया, रंगों से मन सजाती हूॅं
पाॅंव आलता लगा मन ही मन मुस्काती हूूॅं
रंग-बिरंगे फूल खिले, मन महक-महक रहा
अनजानी, बहकी-बहकी-सी मदमाती हूॅं।
प्यार के बाज़ार
प्यार के बाज़ार में अपनापन ढूॅंढने निकले थे
सबकी कीमत थी वहाॅं, मॅंहगे-मॅंहगे बिकते थे
चेहरों पर कृत्रिम मुस्कान लिए सब बैठे थे
जाकर देखा तो प्यार के झूठे वादे पलते थे
लक्ष्य कहीं पीछे छूट गये
लक्ष्य कहीं पीछे छूट गये
राहें हम कब की भूल गये
मंजिल का अब पता नहीं
अपने ही अपनों को लूट गये
सच कड़वा है
उपदेशों से डरने लगी हूॅं जीवन जीने के लिए मरने लगी हूॅं
दुनियाा बड़ी मनमोहिनी, इच्छाओं को पूरा करने में लगी हूॅं
पता है मुझे खाली हाथ आये थे, खाली हाथ ही जायेंगे
सच कड़वा है, सबके साथ मैं भी मुट्ठियाॅं भरने में लगी हूॅं।
मौसम भी दगा दे रहा
चाय के प्याले रीत गये
मनमीत कहीं छूट गये
मौसम भी दगा दे रहा
दिन तो यूॅं ही बीत गये
कैसे होगा ज्ञान वर्द्धन
हम तो ठहरे मूरख प्राणी, कैसे होगा ज्ञान वर्द्धन
ताक-झांक कर-करके ही मिलता है ज्ञान सघन
गूगल में क्या रखा है, अपडेट रहने के लिए
दीवारों की दरारों से सिर टिका करने बैठे हैं मनन
अनिर्वचनीय सौन्दर्य
सूरज की किरणों से तप रही धरा
बादलों ने आकर सुनहरा रूप धरा
सुन्दर आकृतियों से आवृत नभ से
अनिर्वचनीय सौन्दर्य से सजी धरा
बोतलों में बन्द पानी
बोतलों में बन्द पानी पीकर प्यास बुझा रहे
स्वच्छ पानी के लिए कीमत भारी चुका रहे
नहीं जानते बोतलों में क्या भरा, किसने भरा
बोतलों पर एक्सपायरी देख हम चकरा रहे
जल-प्रपात सूख रहे हैं
जल-प्रपात सूख रहे हैं, बादल हमसे रूठ रहे हैं
धरती प्यासी, मन भी प्यासा, प्रेम-रस हम ढूॅंढ रहे हैं
कहीं जल-प्लावन होगा, कहीं धरा सूखे से उलझ रही
आॅंधी-पानी कुछ भी बरसे, नदियों के तट टूट रहे हैं
मर्यादाओं की बात करें
मर्यादाओं की बात करें, मर्यादा का ज्ञान नहीं
बात करें भगवानों की, धर्म-कर्म का भान नहीं
भाषा सुनकर मानों कानों में गर्म तेल ढलता है
झूठे ठाट-बाट दिखलाते, अपनों का ही मान नहीं
कड़वाहट भी अच्छी
बोल-चाल वैसी ही जैसे मन में भाव
देख-देख औरों को चढ़े हमें है ताव
नीम-करेले की कड़वाहट भी अच्छी
तुम्हीं बताओ कौन करे तुमसे लगाव
झूठी तेरी वाणाी
बोल-अबोल कुछ भी बोल, मन की कड़ियाॅं खोल
आज तो तेरे साथ करें हम वार्ता खोलें तेरी पोल
देखें तो कितनी सच्ची, कितनी झूठी तेरी वाणाी
बोल-चाल से भाग लिए पर लगेगा अब तो मोल
अप्रत्यक्ष कर
प्रत्यक्ष करों की क्या बात करें, परोक्ष करों की यहाॅं मार है
हर वस्तु के पीछे छिपे अनगिन कितने टैक्सों की भरमार है
कभी अपने बिल की जांच करना और देखना वस्तु का मूल्य
मूल्य से अधिक खा जाते हैं कर, यही हमारे जीवन का सार है।
प्रत्यक्ष कर
वेतन मिलता कम है, कट जाता ज़्यादा है
आधा वेतन तो प्रत्यक्ष कर ही खा जाता है
हर वर्ष बढ़ता जा रहा है करों का दायरा
हम ही जानते हैं घर कैसे चल पाता है।
रंग-बिरंगी ये लहरें
क्यों पाषाणों का आभास देती रंग-बिरंगी ये लहरें
क्यों रक्त-रंजित होने का आभास दे रहीं ये लहरें
एक तूलिका की छुअन से सब बदल देने की आस
भावों के उत्पात को सहज ही समझा रही ये लहरें