वेदनाओं की गांठें खोल
न बांध ज़िन्दगी में पीड़ा की गठरियों को
कुछ हंस-बोल ले, खोल दे गठरियों को
वेदनाओं की गांठें खोल, कहीं दूर फेंक
तोड़ फेंक झूठे रिश्तों की गठरियों को
इच्छाएं अनन्त
इच्छाएं अनन्त, फैली दिगन्त
पूर्ण होती नहीं, भाव भिड़न्त
कितनी है भागम-भाग यहां
प्रारम्भ-अन्त सब है ज्वलन्त
सच आज लिख ज़रा
जीवन का हर सच, आज लिख ज़रा
झूठ को समझकर, आज लिख ज़रा
न डर किसी से, आज कोई क्या कहे
राज़ खोल दे आज, हर बात लिख ज़रा
फूलों की मधुर मुस्कान
हथेलियों पर लेकर आये हैं फूलों की मधुर मुस्कान
जीवन महका, रंगों की आभा से खिल रही मुस्कान
पीले रंगों से मन बासन्ती हो उठा, क्यों बहक रहा
प्यार का संदेश है यहाँ हर पल बिखर रही मुस्कान
वक्त तक तोड़ न पाया मुझे
मेरे इरादों को मेरी उम्र से जोड़कर हरगिज़ मत देखना
हिमालय को परखती हूं यह समझ कर, मेरी ओर हेरना
उम्र सत्तर है तो क्या हुआ, हिम्मत अभी भी बीस की है
वक्त तक तोड़ न पाया मुझे, समझकर मेरी ओर देखना
अपना जीवन है
अपनी इच्छाओं पर जीने का साहस रख
कोई क्या कहता है इससे न मतलब रख
घुट-घुटकर जीना भी कोई जीना है यारो
अपना जीवन है, औरों के आरोप ताक पर रख
अनिच्छाओं को रोक मत
अनिच्छाओं को रोक मत प्रदर्शित कर
कोई रूठता है तो रूठने दे, तू मत डर
कब तक औरों की खुशियों को ढोते रहेंगे
जो मन न भाये उससे अपने को दूर रख
जीवन की भाग-दौड़ में
जीवन की भाग-दौड़ में कौन हमराही, हमसफ़र कौन
कौन मिला, कौन छूट गया, हमें यहाँ बतलाएगा कौन
आपा-धापी, इसकी-उसकी, उठा-पटक लगी हुई है
कौन है अपना, कौन पराया, ये हमें समझायेगा कौन
भटकन है
दर्द बहुत है पर क्यों बतलाएँ तुमको
प्रश्न बहुत हैं पर कौन सुलझाए उनको
बात करते हैं तब उलाहने ही मिलते हैं
भटकन है पर कोई न राह दिखाए हमको
मन के सच्चे
कानों के तो कच्चे हैं
लेकिन मन के सच्चे हैं
जो सुनते हैं कह देते हैं
मन में कुछ न रखे हैं।
तुमसे ही करते हैं तुम्हारी शिकायत
क्षणिक आवेश में कुछ भी कह देते हैं
शब्द तुम्हारे लौटते नहीं, सह लेते हैं
तुमसे ही करते हैं तुम्हारी शिकायत
इस मूर्खता को आप क्या कहते हैं
मन ठोकर खाता
चलते-चलते मन ठोकर खाता
कदम रुकते, मन सहम जाता
भावों की नदिया में घाव हुए
समझ नहीं, मन का किससे नाता
प्यार का नाता
एक प्यार का नाता है, विश्वास का नाता है
भाई-बहन से मान करता, अपनापन भाता है
दूर रहकर भी नज़दीकियाँ यूँ बनी रहें सदा
जब याद आती है, आँख में पानी भर आता है
बड़ा मुश्किल है Very Difficult
बड़ा मुश्किल है नाम कमाना
मेहनत का फल किसने जाना
बाधाएँ आती हैं आनी ही हैं
किसने राहें रोकी, भूल जाना
किसी के मन न भाती है
पुस्तकों पर सिर रखकर नींद बहुत अच्छी आती है
सपनों में परीक्षा देती, परिणाम की चिन्ता जाती है
सब कहते हैं पढ़-पढ़ ले, जीवन में कुछ अच्छा कर ले
कुछ भी कर लें, बन लें, तो भी किसी के मन न भाती है
तरुणी की तरुणाई
मौसम की तरुणाई से मन-मग्न हुई तरुणी
बादलों की अंगड़ाई से मन-भीग गई तरूणी
चिड़िया चहकी, कोयल कूकी, मोर बोले मधुर
मन मधुर-मधुर, प्रेम-रस में डूब गई तरुणी
धन-दौलत जीवन का आधार
धन-दौलत पर दुनिया ठहरी, धन-दौलत से चलती है
जीवन का आधार है यह, सुच्ची रोटी इसी से बनती है
छल है, मोह-माया है, चाह नहीं, कहने की बातें हैं
नहीं हाथ की मैल है यह, श्रम से सबको फलती है।
असली-नकली की पहचान कहाँ
पीतल में सोने से ज़्यादा चमक आने लगी है
सत्य पर छल-कपट की परत चढ़ने लगी है
असली-नकली की पहचान कहाँ रह गई अब
बस जोड़-तोड़ से अब ज़िन्दगी चलने लगी है।
तीर और तुक्का
एक बार आसमां पर तीर जरूर तानिए
लौटकर आयेगा, प्रभाव, उसका जानिए
तीर के साथ तुक्के का ध्यान भी रखें
नहीं तो तरकस खाली होगा, यह मानिए
जीवन की यही असली कहानी है
आज आपको दिल की सच्ची बात बतानी है
काम का मन नहीं, सुबह से चादर तानी है
पल-पल बदले है सोच, पल-पल बदले भाव
शायद हर जीवन की यही असली कहानी है।
चिन्ता में पड़ी हूँ मैं
सब्ज़ी वाला आया न, सुबह से द्वार खड़ी हूँ मैं
आते होंगे भोजन के लिए, चिन्ता में पड़ी हूँ मैं
स्कूटी मेरी पंक्चर खड़ी, मण्डी तक जाऊँ कैसे
काम में हाथ बंटाया करो कितनी बार लड़ी हूँ मैं
मिर्ची व्यवहार
डाला मीठा अचार
खा रहे बार-बार
कहते मिर्ची लगी
कैसा यह व्यवहार
कल्पना में कमाल देखिए
मन में एक भाव-उमंग, तिरंगे की आन देखिए
रंगों से सजता संसार, कल्पना में कमाल देखिए
घर-घर लहराये तिरंगा, शान-आन और बान से
न सही पताका, पर पताका का यहाँ भाव देखिए
तू अपने मन की कर
चाहे कितना काम करें, कोर-कसर तो रहती है
दुनिया का काम है कहना, कहती ही रहती है
तू अपने मन की कर, तू अपने मन से कर
कोई क्या कहता है, चिन्ता जाती रहती है।
शंख-ध्वनि
तुम्हारी वंशी की धुन पर विश्व संगीत रचता है
तुम्हारे चक्र की गति पर जीवन चक्र चलता है
दूध-दहीं माखन, गैया-मैया, ग्वाल-बाल सब
तुम्हारी शंख-ध्वनि से मन में सब बसता है।
चल रही है ज़िन्दगी
थमी-थमी, रुकी-रुकी-सी चल रही है ज़िन्दगी।
कभी भीगी, कभी ठहरी-सी दिख रही है जिन्दगी।
देखो-देखो, बूँदों ने जग पर अपना रूप सजाया
रोशनियों में डूब रही, कहीं गहराती है ज़िन्दगी।
भाव तिरंगे के
बालमन भी समझ गये हैं भाव तिरंगे के
केशरी, श्वेत, हरे रंगों के भाव तिरंगे के
गर्व से शीश उठता है, देख तिरंगे को
शांति, सत्य, अहिंसा, प्रेम भाव तिरंगे के
विरोध से डरते हैं
सहनशीलता के दिखावे की आदत-सी हो गई है
शालीनता के नाम पर चुप्पी की बात-सी हो गई है
विरोध से डरते हैं, मुस्कुराहट छाप ली है चेहरों पर
सूखे फूलों में खुशबू ढूंढने की आदत-सी हो गई है।
घबराना मत
सूरत पर तो जाना मत
मौसम-सी बदले है अब
लाल-पीले रहते हरदम
चश्मा उतरे घबराना मत
इंसानों की बस्ती
इंसानों की बस्ती में चाल चलने से पहले मात की बात होती है
इंसानों की बस्ती में मुहब्बत से पहले घृणा-भाव की जांच होती है
कोई नहीं पहचानता किसी को, कोई नहीं जानता किसी को यहाँ
इंसानों की बस्ती में अपनेपन से ज़्यादा घात लगाने की बात होती है।