कौन किसी का होता है
पत्थर संग्रहालयों में सुरक्षित हैं जीवन सड़कों पर रोता है

अरबों-खरबों से खेल रहे हम रुपया हवा हो रहा होता है

किसकी मूरत, किसकी सूरत, न पहचानी, बस नाम दे रहे

बस शोर मचाए बैठे हैं, यहाँ अब कौन किसी का होता है

कोई बात ही नहीं

आज तो कोई बात ही नहीं है बताने के लिए

बस यूँ ही लिख रहे हैं कुछ जताने के लिए

दर्दे-दिल की बात तो अब हम करते ही नहीं

वे झट से आँसू बहाने लगते हैं दिखाने के लिए।

चाहतों की भूख

जीवन में आगे-पीछे, ऊपर-नीचे तो चलता रहता है

जो पाया, अनायास न जाने कभी कहाँ खो जाता है

बहुत-बहुत की चाह में धक्का-मुक्की में लगे हैं हम

चाहतों की भूख से मानव कहाँ कभी पार पा पाता है।

 

धन्यवाद देते रहना हमें Keep Thanking
आकाश को थाम कर खड़े हैं नहीं तो न जाने कब का गिर गया होता

पग हैं धरा पर अड़ाये, नहीं तो न जाने कब का भूकम्प आ गया होता

धन्यवाद देते रहना हमें, बहुत ध्यान रखते हैं हम आप सबका सदैव ही

पानी पीते हैं, नहा-धो लेते हैं नहीं तो न जाने कब का सुनामी आ गया होता।

 

ज्योति प्रज्वलित है
क्यों ढूंढते हो दीप तले अंधेरा जब ज्योति प्रज्वलित है

 क्यों देखते हो मुड़कर पीछे, जब सामने प्रशस्त पथ है

जीवन में अमा और पूर्णिमा का आवागमन नियत है

अंधेरे में भी आंख खुली रखें ज़रा, प्रकाश की दमक सरस है

 

ऐसा अक्सर होता है
ऐसा अक्सर होता है जब हम रोते हैं जग हंसता है

ऐसा अक्सर होता है हम हंसते हैं जग ताने कसता है

न हमारी हंसी देख सकते हो न दुख में साथ होते हो

दुनिया की बातों में आकर मन यूँ ही फ़ँसता है।

 

 

धर्म-कर्म के नाम

धर्म-कर्म के नाम पर पाखण्ड आज होय

मंत्र-तंत्र के नाम पर घृणा के बीज बोयें

परम्परा के नाम पर रूढ़ियां पाल रहे हम

किसकी मानें, किसकी छोड़ें, इसी सोच में खोय

 

नेह के बोल

जल लाती हूँ पीकर जाना,

धूप बहुत है सांझ ढले जाना

नेह की छाँव तले बैठो तुम

सब आते होंगे, मिलकर जाना

 

निडर भाव रख

राही अपनी राहों पर चलते जाते

मंज़िल की आस लिए बढ़ते जाते

बाधाएँ तो आती हैं, आनी ही हैं

निडर भाव रख मन की करते जाते।

 

कवियों की पंगत लगी

  कवियों की पंगत लगी, बैठे करें विचार

तू मेरी वाह कर, मैं तेरी, ऐसे करें प्रचार

भीड़ मैं कर लूंगा, तू अनुदान जुटा प्यारे

रचना कैसी भी हो, सब चलती है यार

सुन्दर इंद्रधनुष लाये बादल
शरारती से न जाने कहां -कहां जायें पगलाये बादल

कही धूप, कहीं छांव कहीं यूं ही समय बितायें बादल

कभी-कभी बड़ी अकड़ दिखाते, यहां-वहां छुप जाते

डांट पड़ी तब जलधार संग सुन्दर इंद्रधनुष लाये बादल

कशमकश में बीतता है जीवन

सुख-दुख तो जीवन की बाती है

कभी जलती, कभी बुझती जाती है

यूँ ही कशमकश में बीतता है जीवन

मन की भटकन कहाँ सम्हल पाती है।

 

पहचान नहीं

धन-दौलत थी तो खुले द्वार थे हमारे लिए

जब लुट गई थी द्वार बन्द हुए हमारे लिए

नाम भूल गये, रिश्ते छूट गये, पहचान नहीं

जब दौलत लौटी, हार लिए खड़े हमारे लिए

समझाती है ज़िन्दगी

 कदम-दर-कदम यूँ ही आगे बढ़ती है ज़िन्दगी

कौन आगे, कौन पीछे, नहीं देखती है ज़िन्दगी।

बालपन क्या जाने, क्या पीठ पर, क्या हाथ में

अकेले-दुकेले, समय पर आप ही समझाती है ज़िन्दगी।

प्यार की तलाश करना

हरा-हराकर सिखाया है ज़िन्दगी ने आगे बढ़ना

फूलों ने सिखाया है पतझड़ से मुहब्बत करना

कलम जब साथ नहीं देती, तब अन्तर्मन बोलता है

नफ़रतें तो हम बोते हैं, बस प्यार की तलाश करना

सपने तो सपने होते हैं

सपने तो सपने होते हैं

कब-कब अपने होते हैं

आँखो में तिरते रहते हैं

बातों में अपने होते हैं।

मर्यादाओं की चादर ओढ़े

मर्यादाओं की चादर में लिपटी खड़ी है नारी

न इधर राह न उधर राह, देख रही है नारी

किसको पूछे, किससे  कह दे मन की व्यथा

फ़टी-पुरानी, उधड़ी चादर ओढ़े खड़ी है नारी

करें किससे आशाएँ

मन में चिन्ताएँ सघन

मानों कानन में अगन

करें किससे आशाएँ

कैसे बुझाएँ  ये तपन

कैसी कैसी है ज़िन्दगी

कभी-कभी ठहरी-सी लगती है, भागती-दौड़ती ज़िन्दगी ।

कभी-कभी हवाएँ महकी-सी लगती हैं, सुहानी ज़िन्दगी।

गरजते हैं बादल, कड़कती हैं बिजलियाँ, मन यूँ ही डरता है,

कभी-कभी पतझड़-सी लगती है, मायूस डराती ज़िन्दगी।

अन्तर्मन की आवाजें

 

अन्तर्मन की आवाजें अब कानों तक पहुंचती नहीं

सन्नाटे को चीरकर आती आवाजें अन्तर्मन को भेदती नहीं

यूं तो पत्ता भी खड़के, तो हम तलवार उठा लिया करते हैं

पर बडे़-बडे़ झंझावातों में उजडे़ चमन की बातें झकझोरती नहीं

आँख मूंद सपनों में जीने लगती हूँ

खिड़की से सूनी राहों को तकती हूँ

उन राहों पर मन ही मन चलती हूँ

भटकन है, ठहराव है, झंझावात हैं

आँख मूंद सपनों में जीने लगती हूँ।

बस विश्वास देना

कभी दुख हो तो बस साथ देना

दया मत दिखलाना बस हाथ देना

पीड़ा बढ़ जाती है जब दूरियाँ हों

आँसू मत बहाना बस विश्वास देना

इच्छाएँ हज़ार

छोटा-सा मन इच्छाएँ हज़ार

पग-पग पर रुकावटें हज़ार

ठोकरों से हम घबराए नहीं

नहीं बदलते राहें हम बार-बार

कहने की ही बातें हैं

छल-कपट से दुनिया चलती, छल-कपट करते हैं लोग

कहने की ही बातें हैं कि यहाँ सब हैं सीधे-सादे लोग

बस कहने की बातें हैं, सच बोलो, सन्मार्ग अपनाओ

झूठ पालते, हेरी-फ़ेरी करते, वे ही कहलाते अच्छे लोग

मुस्कुराहटें बांटती हूँ

टोकरी-भर मुस्कुराहटें बांटती हूँ।

जीवन बोझ नहीं, ऐसा मानती हूँ।

काम जब ईमान हो तो डर कैसा,

नहीं किसी का एहसान माँगती हूँ।

ठहरी-ठहरी-सी है ज़िन्दगी

सपनों से हम डरने लगे हैं।

दिल में भ्रम पलने लगे हैं ।

ठहरी-ठहरी-सी है ज़िन्दगी

अपने ही अब खलने लगे हैं।

 

शक्ल हमारी अच्छी है

शक्ल हमारी अच्छी है, बस अपनी नज़र बदल लो तुम।

अक्ल हमारी अच्छी है, बस अपनी समझ बदल लो तुम।

जानते हो, पर न जाने क्यों न मानते हो, हम अच्छे हैं,

मित्रता हमारी अच्छी है, बस अपनी अकड़ बदल लो तुम।

 

अनूठी है यह दुनिया

 अनूठी है यह दुनिया, अनोखे यहां के लोग।

पहचान नहीं हो पाई कौन हैं  अपने लोग।

कष्टों में दिखते नहीं, वैसे संसार भरा-पूरा,

कहने को अनुपम, अप्रतिम, सर्वोत्तम हैं ये लोग।

पीतल है या सोना

 सोना वही सोना है, जिस पर अब हाॅलमार्क होगा।

मां, दादी से मिले आभूषण, मिट्टी का मोल होगा।

वैसे भी लाॅकर में बन्द पड़े हैं, पीतल है या सोना,

सोने के भाव राशन मिले, तब सोने का क्या होगा।

सावन नया

 

रात -दिन अंखियों में बसता दर्द का सावन नया

बाहर बरसे, भीतर बरसे, मन भरमाता सावन नया

कभी मिलते, कभी बिछुड़ते, दर्द का सागर मिला

भावों की नदिया सूखी, कहने को है सावन नया