कभी झड़ी, कभी धूप

 कभी-कभी यूॅं ही सोचने में दिन निकल जाता है

काम बहुत, पर मन नहीं लगता अकेलापन भाता है

ये सूनी-सूनी राहें, झरते पत्ते, कांटों की आहट

कभी झड़ी, कभी धूप, कहाॅं समझ में कुछ आता है