अधूरी हसरतें
कितना भी मिल जाये पर नहीं लगता है कि पूरी हो रही हैं हसरतें
जीवन बीत जाता है पर सदैव यही लगता है अधूरी रही हैं हसरतें
औरों को देख-देख मन उलझता है, सुलझता है और सुलगता है
ईर्ष्या, द्वेष, अहंकार में उलझकर अक्सर बिखर जाती हैं हसरतें
कितना भी मिल जाये पर नहीं लगता है कि पूरी हो रही हैं हसरतें
जीवन बीत जाता है पर सदैव यही लगता है अधूरी रही हैं हसरतें
औरों को देख-देख मन उलझता है, सुलझता है और सुलगता है
ईर्ष्या, द्वेष, अहंकार में उलझकर अक्सर बिखर जाती हैं हसरतें