मन के सच्चे
कानों के तो कच्चे हैं

लेकिन मन के सच्चे हैं

जो सुनते हैं कह देते हैं

मन में कुछ न रखे हैं।

तुमसे ही करते हैं तुम्हारी शिकायत

क्षणिक आवेश में कुछ भी कह देते हैं

शब्द तुम्हारे लौटते नहीं, सह लेते हैं

तुमसे ही करते हैं तुम्हारी शिकायत

इस मूर्खता को आप क्या कहते हैं

मन ठोकर खाता
चलते-चलते मन ठोकर खाता

कदम रुकते, मन सहम जाता

भावों की नदिया में घाव हुए

समझ नहीं, मन का किससे नाता

प्यार का नाता

एक प्यार का नाता है, विश्वास का नाता है

भाई-बहन से मान करता, अपनापन भाता है

दूर रहकर भी नज़दीकियाँ यूँ बनी रहें सदा

जब याद आती है, आँख में पानी भर आता है

बड़ा मुश्किल है  Very Difficult
बड़ा मुश्किल है नाम कमाना

मेहनत का फल किसने जाना

बाधाएँ आती हैं आनी ही हैं

किसने राहें रोकी, भूल जाना

किसी के मन न भाती है
पुस्तकों पर सिर रखकर नींद बहुत अच्छी आती है

सपनों में परीक्षा देती, परिणाम की चिन्ता जाती है

सब कहते हैं पढ़-पढ़ ले, जीवन में कुछ अच्छा कर ले

कुछ भी कर लें, बन लें, तो भी किसी के मन न भाती है

तरुणी की तरुणाई
मौसम की तरुणाई से मन-मग्न हुई तरुणी

बादलों की अंगड़ाई से मन-भीग गई तरूणी

चिड़िया चहकी, कोयल कूकी, मोर बोले मधुर

मन मधुर-मधुर, प्रेम-रस में डूब गई तरुणी

धन-दौलत जीवन का आधार
धन-दौलत पर दुनिया ठहरी, धन-दौलत से चलती है

जीवन का आधार है यह, सुच्ची रोटी इसी से बनती है

छल है, मोह-माया है, चाह नहीं, कहने की बातें हैं

नहीं हाथ की मैल है यह, श्रम से सबको फलती है।

असली-नकली की पहचान कहाँ

पीतल में सोने से ज़्यादा चमक आने लगी है

सत्य पर छल-कपट की परत चढ़ने लगी है

असली-नकली की पहचान कहाँ रह गई अब

बस जोड़-तोड़ से अब ज़िन्दगी चलने लगी है।

तीर और तुक्का
एक बार आसमां पर तीर जरूर तानिए

लौटकर आयेगा, प्रभाव, उसका जानिए

तीर के साथ तुक्के का ध्यान भी रखें

नहीं तो तरकस खाली होगा, यह मानिए

 

जीवन की यही असली कहानी है
आज आपको दिल की सच्ची बात बतानी है

काम का मन नहीं, सुबह से चादर तानी है

पल-पल बदले है सोच, पल-पल बदले भाव

शायद हर जीवन की यही असली कहानी है।

चिन्ता में पड़ी हूँ मैं

सब्ज़ी वाला आया न, सुबह से द्वार खड़ी हूँ मैं

आते होंगे भोजन के लिए, चिन्ता में पड़ी हूँ मैं

स्कूटी मेरी पंक्चर खड़ी, मण्डी तक जाऊँ कैसे

काम में हाथ बंटाया करो कितनी बार लड़ी हूँ मैं

मिर्ची व्यवहार

डाला मीठा अचार

खा रहे बार-बार

कहते मिर्ची लगी

कैसा यह व्यवहार

कल्पना में कमाल देखिए

 मन में एक भाव-उमंग, तिरंगे की आन देखिए

रंगों से सजता संसार, कल्पना में कमाल देखिए

घर-घर लहराये तिरंगा, शान-आन और बान से

न सही पताका, पर पताका का यहाँ भाव देखिए

तू अपने मन की कर

चाहे कितना काम करें, कोर-कसर तो रहती है

दुनिया का काम है कहना, कहती ही रहती है

तू अपने मन की कर, तू अपने मन से कर

कोई क्या कहता है, चिन्ता जाती रहती है।

शंख-ध्वनि
तुम्हारी वंशी की धुन पर विश्व संगीत रचता है

तुम्हारे चक्र की गति पर जीवन चक्र चलता है

दूध-दहीं माखन, गैया-मैया, ग्वाल-बाल सब

तुम्हारी शंख-ध्वनि से मन में सब बसता है।

चल रही है ज़िन्दगी

थमी-थमी, रुकी-रुकी-सी चल रही है ज़िन्दगी।

कभी भीगी, कभी ठहरी-सी दिख रही है जिन्दगी।

देखो-देखो, बूँदों ने जग पर अपना रूप सजाया

रोशनियों में डूब रही, कहीं गहराती है ज़िन्दगी।

भाव तिरंगे के

बालमन भी समझ गये हैं भाव तिरंगे के

केशरी, श्वेत, हरे रंगों के भाव तिरंगे के

गर्व से शीश उठता है, देख तिरंगे को

शांति, सत्य, अहिंसा, प्रेम भाव तिरंगे के

विरोध से डरते हैं

सहनशीलता के दिखावे की आदत-सी हो गई है

शालीनता के नाम पर चुप्पी की बात-सी हो गई है

विरोध से डरते हैं, मुस्कुराहट छाप ली है चेहरों पर

सूखे फूलों में खुशबू ढूंढने की आदत-सी हो गई है।

घबराना मत

सूरत पर तो जाना मत

मौसम-सी बदले है अब

लाल-पीले रहते हरदम

चश्मा उतरे घबराना मत

इंसानों की बस्ती
इंसानों की बस्ती में चाल चलने से पहले मात की बात होती है

इंसानों की बस्ती में मुहब्बत से पहले घृणा-भाव की जांच होती है

कोई नहीं पहचानता किसी को, कोई नहीं जानता किसी को यहाँ

इंसानों की बस्ती में अपनेपन से ज़्यादा घात लगाने की बात होती है।

मन  उलझ रहा

आंखों में काजल है नभ पर बादल हैं

भाव बहक रहे ये दिल तो पागल है

रिमझिम बरखा में मन क्यों उलझ रहा

उनकी यादों में मन विचलित, घायल है

उनकी यादों में

क्यों हमारे दिन सभी मुट्ठियों से फ़िसल जायेंगे

उनकी यादों में जीयेंगे, उनकी यादों में मर जायेंगे

मरने की बात न करना यारो, जीने की बात करें

दिल के आशियाने में उनकी एक तस्वीर सजायेंगे।

रंग-बिरंगी  ज़िन्दगी

इन पत्तों में रंग-बिरंगी दिखती है ज़िन्दगी

इन पत्तों-सी उड़ती-फिरती है ये जिन्दगी

कब झड़े, कब उड़े, हुए रंगहीन, क्या जानें

इन पत्तों-सी धरा पर उतार लाती है जिन्दगी।

मुस्कानों को नहीं छीन सकता कोई

ज़िन्दगियाँ पानी-पानी हो रहीं

जंग खातीं काली-काली हो रहीं

मुस्कानों को नहीं छीन सकता कोई

चाहें थालियाँ खाली-खाली हो रहीं।

मन में बजे सरगम
मस्ती में मनमौजी मन

पायल बजती छन-छनछन

पैरों की अनबन

बूँदों की थिरकन

हाथों से छल-छल

जल में

बनते भंवर-भंवर

हल्की-हल्की छुअन

बूँदों की रागिनी

मन में बजती सरगम।

करते रहते हैं  बातें
बढ़ती आबादी को रोक नहीं पाते

योजनाओं पर अरबों खर्च कर जाते

शिक्षा और जानकारियों की है कमी

बैठे-बैठे बस करते रहते हैं हम बातें

मोती बनीं सुन्दर
बूँदों का सागर है या सागर में बूँदें

छल-छल-छलक रहीं मदमाती बूँदें

सीपी में बन्द हुईं मोती बनीं सुन्दर

छू लें तो मानों डरकर भाग रही बूँदें

हरपल बदले अर्थ यहाँ
शब्दों के अब अर्थ कहाँ, सब कुछ लगता व्यर्थ यहाँ

कहते कुछ हैं, करते कुछ है, हरपल बदले अर्थ यहाँ

भाव खो गये, नेह नहीं, अपनेपन की बात नहीं अब

किसको मानें, किसे मनायें, इतनी अब सामर्थ्य कहाँ

कोई हमें क्यों रोक रहा
आँख बन्द कर सोने में मज़ा आने लगता है।

बन्द आँख से झांकने में मज़ा आने लगता है।

पकी-पकाई मिलती रहे, मुँह में ग्रास आता रहे

कोई हमें क्यों रोक रहा, यही खलने लगता है