मीठी वाणी भूल गये
आचार-विचार परखें औरों के, अपनी भाषा अशुद्ध
नये-नये शब्द गढ़ रहे, कहते भाषा हमारी विशुद्ध
मीठी वाणी तो कबके भूल गये, कटाक्ष करें हरदम
कभी-कभी तो लगता न जाने क्यों रहते हैं यूॅं क्रुद्ध
आचार-विचार परखें औरों के, अपनी भाषा अशुद्ध
नये-नये शब्द गढ़ रहे, कहते भाषा हमारी विशुद्ध
मीठी वाणी तो कबके भूल गये, कटाक्ष करें हरदम
कभी-कभी तो लगता न जाने क्यों रहते हैं यूॅं क्रुद्ध