फूलों संग महक रही धरा

पत्तों पर भंवरे, कभी तितली बैठी देखो पंख पसारे।

धूप सेंकती, भोजन करती, चिड़िया देखो कैसे पुकारे।

सूखे पत्ते झर जायेंगे, फिर नव किसलय आयेंगें,

फूलों संग महक रही धरा, बरसीं बूंदें कण-कण निखारे।

ज़िन्दगी लगती बेमानी है

जन्म की अजब कहानी है, मरण से जुड़ी रवानी है।

श्मशान घाट में जगह नहीं, खो चुके ज़िन्दगानी हैं।

पंक्तियों में लगे शवों का टोकन से होगा संस्कार,

फ़ुटपाथ पर लगी पंक्तियां, ज़िन्दगी लगती बेमानी है।

हाथों से मिले नेह-स्पर्श

 पत्थरों में भाव गढ़ते हैं,

जीवन में संवाद मरते हैं।

हाथों से मिले नेह-स्पर्श,

बस यही आस रखते है।

 

आंसू और हंसी के बीच

यूं तो राहें समतल लगती हैं, अवरोध नहीं दिखते।

चलते-चलते कंकड़ चुभते हैं, घाव कहीं रिसते।

कभी तो बारिश की बूंदें भी चुभ जाया करती हैं,

आंसू और हंसी के बीच ही इन्द्रधनुष देखे खिलते।

 

दिन-रात

दिन-रात जीवन के आवागमन का भाव बताता है।

दिन-रात जीवन के दुख-सुख का हाल बताता है।

सूरज-चंदा-तारे सब इस चक्र में बौखलाए देखे,

दिन-रात जीवन के तम-प्रकाश की चाल बताता है।

 

पुष्प निःस्वार्थ भाव से

पुष्प निःस्वार्थ भाव से नित बागों को महकाते।

पंछी को देखो नित नये राग हमें मधुर सुनाते।

चंदा-सूरज दिग्-दिगन्त रोशन करते हरपल,

हम ही क्यों छल-कपट में उलझे सबको बहकाते।

 

निरन्तर बढ़ रही हैं दूरियां

कुछ शहरों की हैं दूरियां, कुछ काम-काज की दूरियां

मेल-मिलाप कैसे बने, निरन्तर बढ़ रही हैं दूरियां

परिवार निरन्तर छिटक रहे, दूर-पार सब जा रहे,

तकनीक आज मिटा रही हम सबके बीच की दूरियां

 

जलने-बुझने के बीच

न इस तरह जलाओ कि सिलसिला बन जाये।

न इस तरह बुझाओ कि राख ही नज़र जाये।

जलने-बुझने के बीच बहुत कुछ घट जाता है,

न इस तरह तम हटाओ कि आंख ही धुंधला जाये।

 

हे घन ! कब बरसोगे

अब तो चले आओ प्रियतम कब से आस लगाये बैठे हैं

चांद-तारे-सूरज सब चुभते हैं, आंख टिकाये बैठे हैं

इस विचलित मन को कब राहत दोगे बतला दो,

हे घन ! कब बरसोगे, गर्मी से आहत हुए बैठे हैं

 

हम क्यों आलोचक बनते जायें

खबरों की हम खबर बनाएं,

उलट-पलटकर बात सुझाएं,

काम किसी का, बात किसी की,

हम यूं ही आलोचक बनते जाएं।

कलश तेरी माया अद्भुत है

 

कलश तेरी माया अद्भुत है, अद्भुत है तेरी कहानी।

माटी से निर्मित, हमें बताता जीवन की पूरी कहानी।

जल भरकर प्यास बुझाता, पूजा-विधि तेरे बिना अधूरी,

पर, अंतकाल में कलश फूटता, बस यही मेरी कहानी।

आई दुल्हन

 

पायल पहले रूनझुन करती आई दुल्हन।

कंगन बजते, हार खनकते, आई दुल्हन।

श्रृंगार किये, सबके मन में रस बरसाती]

घर में खुशियों के रंग बिखेरे आई दुल्हन।

किसान क्यों है परेशान

कहते हैं मिट्टी से सोना उगाता है किसान।

पर उसकी मेहनत की कौन करता पहचान।

कैसे कोई समझे उसकी मांगों की सच्चाई,

खुले आकाश तले बैठा आज क्यों परेशान।

मदमाता शरमाता अम्बर

रंगों की पोटली लेकर देखो आया मदमाता अम्बर

भोर के साथ रंगों की पोटली बिखरी, शरमाता अम्बर

रवि को देख श्वेताभा के अवगुंठन में छिपता, भागता

सांझ ढले चांद-तारों संग अठखेलियां कर भरमाता अम्बर

 

दर्दे दिल के निशान

 

काश! मेरा मन रेत का कोई बसेरा होता।

सागर तट पर बिखरे कणों का घनेरा होता।

दर्दे दिल के निशान मिटा देतीं लहरें, हवाएं,

सागर तल से उगता हर नया सवेरा होता।

भावनाएं पत्थर हो गईं

सड़कों पर आदमी भूख से मरता रहा।

मंदिरों में स्वर्ण, रजत, हीरा चढ़ता रहा।

भावनाएं पत्थर हो गईं, कौन समझा यहां

बेबस इंसान भगवान की मूतियां गढ़ता रहा।

मन हर्षित होता है

दूब पर चमकती ओस की बूंदें, मन हर्षित कर जाती हैं।

सिर झुकाई घास, देखो सदा पैरों तले रौंद दी जाती है।

कहते हैं डूबते को तृण का सहारा ही बहुत होता है,

पूजा-अर्चना में दूर्वा से ही आचमन विधि की जाती है।

 

व्यवसाय बनी है शिक्षा

शिक्षक का नअब मान रहा।

छात्र का न अब प्रतिदान रहा।

व्यवसाय बनी है शिक्षा अब,

व्यापार बना, यह काम रहा

समानता का भाव

बस एक इंसानियत का भाव जगाना होगा।

समानता का भाव सबके मन में लाना होगा।

मानवता को बांटकर देश प्रगति नहीं करते,

हर तरह का भेद-भाव अब मिटाना होगा।

कभी हमारी रचना पर आया कीजिए

समीक्षा कीजिए, जांच कीजिए, पड़ताल कीजिए।

इसी बहाने कभी-कभार रचना पर आया कीजिए।

बहुत आशाएं तो हम करते नहीं समीक्षकों से,

बहुत खूब, बहुत सुन्दर ही लिख जाया कीजिए।

समय समय की बात

वस्त्र सुन्दर, मूल्यवान, यूं अलमारी में चन्द पड़े हैं,

क्या पहने, अब बात नहीं होती घर में बन्द खड़े हैं,

तह लगाते, तह पलटते, देखें कहीं दीमक न खाए

स्वर्णाभूषण यूं लगते मानों देखो सारे जंग गड़े हैं।

बाधाएं राहों से कैसे हटतीं

 

विनम्रता से सदा दुनिया नहीं चलती

समझौतों से सदा बात यहां नहीं बनती

हम रोते हैं, जग हंसता है ताने कसता है,

आंख दिखा, तभी राहों से बाधाएं हैं हटतीं।

चिड़िया फूल रंग और मन

 

चिड़िया की कुहुक-कुहुक, फूलों की महक-महक

राग बजे मधुर-मधुर, मन गया बहक-बहक

सरगम की तान छिड़ी, साज़ बजे, राग बने

सतरंगी आभा छाई , ताल बजे ठुमुक-ठुमुक

प्रभास है जीवन

हास है, परिहास है, विश्वास है जीवन

हर दिन एक नया प्रयास है जीवन

सूरज भी चंदा के पीछे छिप जाता है,

आप मुस्कुरा दें तो तो प्रभास है जीवन

सावन की बातें मनभावन की बातें

वो सावन की बातें, वो मनभावन की बातें, छूट गईं।

वो सावन की यादें, वो प्रेम-प्यार की बातें, भूल गईं।

मन डरता है, बरसेगा या होगा महाप्रलय कौन जाने,

वो रिमझिम की यादें, वो मिलने की बातें, छूट गईं ।

समझिए समय की दरकार

 

हाथ मिलाना मना है, समझाया था, कीजिए नमस्कार।

चेहरों के भाव परखिए, आंखों के भाव समझिए सरकार।

कौन जाने किसके हाथों में कांटें छुपे हैं, कहां चुभेंगें,

मन को परखना सीखिए, यही है समय की दरकार।

विश्वगुरू बनने की बात करें

 

विश्वगुरू बनने की बात करें, विज्ञान की प्राचीन कथाएं पढ़े हम शान से।

सवा सौ करोड़ में सवा लाख सम्हलते नहीं, रहें न जाने किस मान में।

अपने ही नागरिक प्रवासी कहलाते, विश्व-पर्यटन का कीर्तिमान बना

अब लोकल-वोकल की बात करें, यही कथाएं चल रहीं हिन्दुस्तान में।

जग में न मिला अपनापन

 

सुख के दिन बीते, दुख के बीहड़ में नहीं दिखता अपनापन

अपने सब दूर हुए, दृग तरसें, ढूंढे जग में न मिला अपनापन

द्वार बन्द मिले, पहचान खो गई, दूर तलक न मिला कोई,

सत्य को जानिए, आप ही बनिए हर हाल में अपना संकटमोचन

 

अभिनन्दन करते मातृभूमि का

 

वन्दन करते, अभिनन्दन करते मातृभूमि का जिस पर हमने जन्म लिया

लोकतन्त्र देता अधिकार असीमित, क्या कर्त्तव्यों की ओर कभी ध्यान दिया

देशभक्ति के नारों से, कुछ गीतों, कुछ व्याखानों से, जय-जय-जयकारों से ,

पूछती हूं स्वयं से, इससे हटकर देशहित में और कौन-कौन-सा कर्म किया

जीवन की लम्‍बी राहों में

 

जीवन की लम्‍बी राहों में उलझे-बिखरे रस्‍ते हैं यादों के

पीछे मुड़कर देखें तो कुछ मोती , कुछ कण्‍टक हैं वादों के

किसने साथ दिया, कौन संग चला जीवन भर,  क्‍या सोचना,

क्‍यों साथ लेकर चलें अकारण ही भरी  संवादों के विवादों के