‘गर किसी पर न हो मरना तो जीने का मजा क्या
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यादों के उजाले नहीं भाते
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पूजा में हाथ जुड़ते नहीं
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कांटों की चुभन

बात पुरानी हो गई जब कांटों से हमें मुहब्बत न थी

एक कहानी हो गई जब फूलों की हमें चाहत तो थी

काल के साथ फूल खिल-खिल बिखर गये बदरंग

कांटों की चुभन आज भी हमारे दिल में बसी क्यों थी

कांटों से मुहब्बत हो गई

समय बदल गया हमें कांटों से मुहब्बत हो गई

रंग-बिरंगे फूलों से चाहत की बात पुरानी हो गई

कहां टिकते हैं अब फूलों के रंग और अदाएं यहां

सदाबहार हो गये अब कांटें, बस इतनी बात हो गई

जिन्दगी में दोस्त आप ही ढूंढने पड़ते हैं
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काश! यह दुनिया कोई सपना होती
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कुछ सपने बोले थे कुछ डोले थे
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स्वनियन्त्रण से ही मिटेगा भ्रष्टाचार

नित परखें हम आचार-विचार

औरों की सोच पर करते प्रहार

अपने भाव परखते नहीं हम कभी

स्वनियन्त्रण से ही मिटेगा भ्रष्टाचार

 

 

खाली कागज़ पर लकीरें  खींचता रहता हूं मैं
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मन उदास-उदास क्यों है
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सरस-सरस लगती है ज़िन्दगी।
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तिनके का सहारा
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कुछ कह रही ओस की बूंदे

रंग-बिरंगी आभाओं से सजकर रवि हुआ उदित

चिड़ियां चहकीं, फूल खिले, पल्लव हुए मुदित

देखो भाग-भागकर कुछ कह रही ओस की बूंदे

इस मधुर भाव में मन क्यों न हो जाये प्रफुल्लित

इक नल लगवा दे भैया
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हाय-हैल्लो मत कहना
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निशा पड़ाव पल भर
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परिवर्तन नित्य है

सन्मार्ग पर चलने के लिए रोशनी की बस एक किरण ही काफ़ी है
इरादे नेक हों, तो, राही दो हों न हों, बढ़ते रहें, इतना ही काफ़ी है
सूर्य अस्त होगा, रात आयेगी, तम भी फैलेगा, संगी साथ छोड़ देंगे,
तब भी राह उन्मुक्त है, परिवर्तन नित्य है, इतना जानना ही काफ़ी है

छनक-छन तारे छनके
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हां हूं मैं बगुला भक्त
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चैन से सो लेने दो

अच्छे-भले मुंह ढककर सो रहे थे यूं ही हिला हिलाकर जगा दिया

अच्छा-सा चाय-नाश्ता कराओं खाना बनाओ, हुक्म जारी किया

अरे अवकाश  हमारा अधिकार है, चैन से सो लेने दो, न जगाओ

नींद तोड़ी हमारी तो मीडिया बुला लेंगे हमने बयान जारी किया

अपनी हिम्मत से जीते हैं

बस एक दृढ़ निश्चय हो तो राहें उन्मुक्त हो ही जाती हैं
लक्ष्य पर दृष्टि हो तो बाधाएं स्वयं ही हट जाती हैं
कौन रोक पाता है उन्हें जो अपनी हिम्मत से जीते हैं
प्रयास करते रहने वालों को मंज़िल मिल ही जाती है

रोशनी की चकाचौंध में

रोशनी की चकाचौंध में अक्सर अंधकार के भाव को भूल बैठते हैं हम

सूरज की दमक में अक्सर रात्रि के आगमन से मुंह मोड़ बैठते हैं हम

तम की आहट भर से बौखलाकर रोशनी के लिए हाथ जला बैठते हैं

ज्योति प्रज्वलित है, फिर भी दीप तले अंधेरा ही ढूंढने बैठते हैं हम

मानव के धोखे में मत आ जाना
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अपनापन आजमाकर देखें

चलो आज यहां ही सबका अपनापन आजमाकर देखें

मेरी तुकबन्दी पर वाह वाह की अम्बार लगाकर देखें

न मात्रा, न मापनी, न गणना, छन्द का ज्ञान है मुझे

मेरे तथाकथित मुक्तक की ज़रा हवा निकालकर देखें

 

बहके हैं रंग

रंगों की आहट से खिली खिली है जिन्दगी

अपनों की चाहत से मिली मिली है जिन्दगी

बहके हैं रंग, चहके हैं रंग, महके हैं रंग,

 रंगों की रंगीनियों से हंसी हंसी है जिन्दगी

अस्त्र उठा संधान कर

घृणा, द्वेष, हिंसा, अपराध, लोभ, भ्रष्टाचार, साम्प्रदायिकता के रावण बहुत हैं।

और हम हाथ जोड़े, बस राम राम पुकारते, दायित्व से भागते, सयाने बहुत हैं।

न आयेंगे अब सतयुग के राम तुम्हारी सहायता के लिए इन का संधान करने।

अपने भीतर तलाश कर, अस्त्र उठा, संधान कर, साहस दिखा, रास्ते बहुत हैं।

ज़मीन से उठते पांव थे

आकाश को छूते अरमान थे

ज़मीन से उठते पांव थे

आंखों पर अहं का परदा था

उल्टे पड़े सब दांव थे

फिर उनके कंधों पर बंहगी ढूंढते हैं
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निर्माण हो या हो अवसान
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