मानव के धोखे में मत आ जाना

समझाया था न तुझको

जब तक मैं न लौटूं

नीड़ से बाहर मत जाना

मानव के 

धोखे में मत आ जाना।

फैला चारों ओर प्रदूषण

कहीं चोट मत खा जाना।

कहां गये सब संगी साथी

कहां ढूंढे अब उनको।

समझाकर गई थी न

सब साथ-साथ ही रहना।

इस मानव के धोखे में मत आ जाना।

उजाड़ दिये हैं रैन बसेरे

कहां बनाएं नीड़।

न फल मिलता है

न जल मिलता है

न कोई डाले चुग्गा।

हाथों में पिंजरे है

पकड़ पकड़ कर हमको

इनमें डाल रहे हैं

कोई अभयारण्य बना रहे हैं,

परिवारों से नाता टूटे

अपने जैसा मान लिया है।

फिर कहते हैं, देखो देखो

हम जीवों की रक्षा करते हैं।

चलो चलो

कहीं और चलें

इन शहरों से दूर।

करो उड़ान की तैयारी

हमने अब यह ठान लिया है।