आत्मश्लाघा का आनन्द
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प्रेम की एक नवीन धारा
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मन तो बहकेगा ही
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शुष्कता को जीवन में रोपते  हैं
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अन्तर्मन का पंछी
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शांति और सन्नाटा
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चल आज लड़की-लड़की खेलें
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नारी स्वाधीनता की  बात
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कुछ तो हुआ होगा
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कोशिश तो करते हैं
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कानून तोड़ना अधिकार हमारा
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दीप प्रज्वलित कर न पाई
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उतर कभी धरा पर
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मुझको क्या करना है
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जीवन के कितने पल

वियोग-संयोग भाग्य के लेखे

अपने-पराये कब किसने देखे

दुःख-सुख तो आने-जाने हैं

जीवन के कितने पल किसने देखे।

 

अपना साहस परखता हूँ मैं
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भेड़-चाल की  बात
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इरादे नेक हों तो
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चोर-चोर मौसरे भाई
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चिड़िया से पूछा मैंने
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नई राहें
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ओस की बूंदें

अंधेरों से निकलकर बहकी-बहकी-सी घूमती हैं ओस की बूंदें ।

पत्तों पर झूमती-मदमाती, लरजतीं] डोलती हैं ओस की बूंदें ।

कब आतीं, कब खो जातीं, झिलमिलातीं, मानों खिलखिलातीं

छूते ही सकुचाकर, सिमटकर कहीं खो जाती हैं ओस की बूंदें। 

अपनेपन को समझो

रिश्तों में जब बिखराव लगे तो अपनी सीमाएं समझो

किसी और की गलती से पहले अपनी गलती परखो

इससे पहले कि डोरी हाथ से छूटती, टूटती दिखे

कुछ झुक जाओ, कुछ मना लो, अपनेपन को समझो

उलझे बैठे हैं अनजान राहों में

जीवन ऊँची-नीची डगर है।

मन में भावनाओं का समर है।

उलझे बैठे हैं अनजान राहों में

मानों अंधेरों में ही अग्रसर हैं।

मन सूना लगता है

दुनिया चाहे सम्मान दे, पर अपने मन को परखिए।

क्या पाया, क्या खाया, क्या गंवाया, जांच कीजिए।

कीर्ति पताकाएँ लहराती हैं, महिमा-गान हो रहा,

फिर भी मन सूना लगता है, इसका कारण जांचिए।

मुस्कुराहटें बांटती हूँ

टोकरी-भर मुस्कुराहटें बांटती हूँ।

जीवन बोझ नहीं, ऐसा मानती हूँ।

काम जब ईमान हो तो डर कैसा,

नहीं किसी का एहसान माँगती हूँ।

हालात कहाँ बदलते हैं
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उधारों पर दुनिया चलती है
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अपनी कहानियाँ आप रचते हैं
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आशाओं के दीप
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