लिख नहीं पाती

मौसम बदल रहा है

बाहर का

या मन का

समझ नहीं पाती अक्सर।

हवाएं

तेज़ चल रही हैं

धूल उड़ रही है,

भावों पर गर्द छा रही है,

डालियां

बहकती हैं

और पत्तों से रुष्ट

झाड़ देती हैं उन्हें।

खिली धूप में भी

अंधकार का एहसास होता है,

बिन बादल भी

छा जाती हैं घटाएं।

लगता है

घेर रही हैं मुझे,

तब लिख नहीं पाती।