दिखाने को अक्सर मन हंसता है

चोट कहां लगी थी,

कब लगी थी,

कौन बतलाए किसको।

दिल छोटा-सा है

पर दर्द बड़ा है,

कौन बतलाए किसको।

गिरता है बार-बार,

और बार-बार सम्हलता है।

बहते रक्त को देखकर

दिखाने को अक्सर मन  हंसता है।

मन की बात कह ले पगले,

कौन समझाए उसको।

न डर कि कोई हंसेगा,

या साथ न देगा कोई।

ऐसे ही दुनिया चलती है,

जीवन ऐसे ही चलता है,

कौन समझाए उसको।

आंसू भीतर-भीतर तिरते हैं,

आंखों में मोती बनते हैं,

तिनका अटका है आंख में,

कहकर,

दिखाने को अक्सर मन हंसता है।