हम भी शेर हुआ करते थे
एक प्राचीन कथा है
गीदड़ ने शेर की खाल ओढ़ ली थी
और जंगल का राजा बन बैठा था।
जब साथियों ने हुंआ-हुंआ की
तब वह भी कर बैठा था।
और पकड़ा गया था,
पकड़ा क्या, बेचारा मारा गया था।
ज़माना बदल गया ।
शेर न सोचा
मैं गीदड़ की खाल ओढ़कर देखूं एक बार।
एक की देखा-देखी,
सभी शेरों ने गीदड़ की खाल ओढ़ ली
और हुंआ-हुंआ करने लगे।
धीरे-धीरे वे
अपनी असलियत भूलते चले गये।
आज सारे शेर
दहाड़ना भूलकर
हुंआ-हुंआ करने में लगे हैं।
अपना शिकार करना छोड़कर
औरों की जूठन खाने में लगे हैं।
गीदड़-भभकियां दे रहे हैं,
और सारे अपने-आप को
राजा समझ बैठे हैं।
शोक किस बात का, आरोप किस बात का।
हमारे भीतर का शेर भी तो
हुंआ-हुंआ करने में ही लगा है।
लेकिन बड़ी बात यह,
कि हमें यही नहीं पता
कि हम भीतर से वास्तव में शेर हैं
जो गीदड़ की खाल ओढ़े बैठे हैं,
या हैं ही गीदड़
और इस भ्रम में जी रहे हैं,
कि एक समय की बात है,
हम भी शेर हुआ करते थे।