कितनी मनोहारी है जि़न्दगी
प्रतिदित प्रात नये रंग-रूप में खिलती है जि़न्दगी
हरी-भरी वाटिका-सी देखो रोज़ महकती है जि़न्दगी
कभी फूल खिेले, कभी फूल झरे, रंगों से धरा सजी
ज़रा आंख खोलकर देख, कितनी मनोहारी है जि़न्दगी
प्रतिदित प्रात नये रंग-रूप में खिलती है जि़न्दगी
हरी-भरी वाटिका-सी देखो रोज़ महकती है जि़न्दगी
कभी फूल खिेले, कभी फूल झरे, रंगों से धरा सजी
ज़रा आंख खोलकर देख, कितनी मनोहारी है जि़न्दगी