एक शुरूआत की ज़रूरत है
सुना और पढ़ा है मैंने
कि कोई
पाप का घड़ा हुआ करता था
और सब
हाथ पर हाथ धरे
प्रतीक्षा में बैठे रहते थे
कि एक दिन तो भरेगा
और फूटेगा] तब देखेंगे।
मैं समझ नहीं पाई
आज तक
कि हम प्रतीक्षा क्यों करते हैं
कि पहले तो घड़ा भरे
फिर फूटे, फिर देखेंगे,
बतायेगा कोई मुझे
कि क्या देखेंगे ?
और यह भी
कि अगर घड़ा भरकर
फूटता है
तो उसका क्या किया जाता था।
और अगर घड़ा भरता ही जाता था
भरता ही जाता था
और फूटता नहीं था
तब क्या करते थे ?
पलायन का यह स्वर
मुझे भाता नहीं
इंतज़ार करना मुझे आता नहीं
आह्वान करती हूं,
घरों से बाहर निकलिए
घड़ों की शवयात्रा निकालिए।
श्मशान घाट में जाकर
सारे घड़े फोड़ डालिए।
बस पाप को नापना नहीं।
छोटा-बड़ा जांचना नहीं।
बस एक शुरूआत की ज़रूरत है।
बस एक से शुरूआत की ज़रूरत है।।।