चौखट पर सपने
पलकों की चौखट पर सपने
इक आहट से जग जाते हैं।
बन्द कर देने पर भी
निरन्तर द्वार खटखटाते हैं।
आॅंखों में नींद नहीं रहती
फिर भी सपने छूट नहीं पाते हैं।
कुछ देखे, कुछ अनदेखे सपने
भीतर ही भीतर कुलबुलाते हैं।
नहीं चाहती कोई समझ पाये
मेरे सपनों की माया
पर आॅंखें मूॅंद लेने पर भी
कोरों पर नम-से उभर आते हैं।