चाहतों की भूख

जीवन में आगे-पीछे, ऊपर-नीचे तो चलता रहता है

जो पाया, अनायास न जाने कभी कहाँ खो जाता है

बहुत-बहुत की चाह में धक्का-मुक्की में लगे हैं हम

चाहतों की भूख से मानव कहाँ कभी पार पा पाता है।