हे घन ! कब बरसोगे
अब तो चले आओ प्रियतम कब से आस लगाये बैठे हैं।
चांद-तारे-सूरज सब चुभते हैं, आंख टिकाये बैठे हैं।
इस विचलित मन को कब राहत दोगे बतला दो,
हे घन ! कब बरसोगे, गर्मी से आहत हुए बैठे हैं ।
अब तो चले आओ प्रियतम कब से आस लगाये बैठे हैं।
चांद-तारे-सूरज सब चुभते हैं, आंख टिकाये बैठे हैं।
इस विचलित मन को कब राहत दोगे बतला दो,
हे घन ! कब बरसोगे, गर्मी से आहत हुए बैठे हैं ।