अपने बारे में क्या लिखूं। डा. रघुवीर सहाय के शब्दों में ‘‘बहुत बोलने वाली, बहुत खाने वाली, बहुत सोने वाली’’ किन्तु मेरी रचनाएं बहुत बोलने वालीं, बहुत बोलने वालीं, बहुत बोलने वालीं
कण-कण में बसते हैं राम
हर मन में बसते हैं राम
मूर्ति बना करें हम पूजन
कृपालु बने हैं हम पर राम