हमारे नाम की चाबी

मां-पिता

जब ईंटें तोड़ते हैं

तब मैंने पूछा

इनसे क्या बनता है मां ?

 

मां हंसकर बोली

मकान बनते हैं बेटा!

मैंने आकाश की ओर

सिर उठाकर पूछा

ऐसे उंचे बनते हैं मकान?

कब बनते हैं मकान?

कैसे बनते हैं मकान?

कहां बनते हैं मकान?

औरों के ही बनते हैं मकान,

या अपना भी बनता है मकान।

मां फिर हंस दी।

पिता की ओर देखकर बोली,

छोटा है अभी तू

समझ नहीं पायेगा,

तेरे हिस्से का मकान कब बन पायेगा।

शायद कभी कोई

हमारे नाम से चाबी देने आयेगा।

और फिर ईंटें तोड़ने लगी।

मां को उदास देख

मैंने भी हथौड़ी उठा ली,

बड़ी न सही, छोटी ही सही,

तोड़ूंगा कुछ ईंटें

तो मकान तो ज़रूर बनेगा,

इतना उंचा न सही

ज़मीन पर ज़रूर बनेगा मकान!