सबके सपनों की गठरी बांधे
परदे में रहती थी पर परदे से बाहर की दुनिया समझाती थी मां
अक्षर ज्ञान नहीं था पर पढ़े-लिखों से ज्यादा ज्ञान रखती थी मां
सबके सपनों की गठरी बांधे, जाने कब सोती थी कब उठती थी
घर भर में फिरकी सी घूमती पल भर में सब निपटा लेती थी मां