वे पिता ही थे

वे पिता ही थे

जिन्‍होंने थामा था हाथ मेरा।

राह दिखाई थी मुझे

अंधेरे से रोशनी तक

बिखेरी थी रंगीनियां मेरे जीवन में।

और समझाया था मुझे

एक दिन छूट जायेगा मेरा हाथ

और आगे की राह

मुझे स्‍वयं ही चुननी होगी।

मुझे स्‍वयं जूझना होगा

रोशनी और अंधेरों से।

और कहा था

प्रतीक्षा करूंगा तुम्‍हारी

तुम लौटकर आओगी

और थामोगी मेरा हाथ

मेरी लाठी छीनकर।

तब

फिर घूमेंगे हम

साथ-साथ

यूं ही हाथ पकड़कर।