अपने बारे में क्या लिखूं। डा. रघुवीर सहाय के शब्दों में ‘‘बहुत बोलने वाली, बहुत खाने वाली, बहुत सोने वाली’’ किन्तु मेरी रचनाएं बहुत बोलने वालीं, बहुत बोलने वालीं, बहुत बोलने वालीं
दीवारों में दरारें होना
ज़रूरी तो नहींए
ज़रा
मिट्टी की परत
हिलने से ही
दुनिया
भीतर तक
झांक लेती है।