बैठे-ठाले यूं ही
अदृश्य,
एक छोटा-सा मन।
भाव,
सागर की अथाह जलराशि-से।
न डूबें, न उतरें।
तरल-तरल, बहक-बहक।
विशालकाय वृक्ष से
कभी सम्बल देते।
और कभी अनन्त शाखाओं से
इधर-उधर भटकन।
जल अतल, थल विस्तारित
कभी भंवर, कभी बवंडर
कुछ रंग, कुछ बेरंग
बस
बैठे-ठाले यूं ही।