बेवजह जागने की आदत नहीं हमारी
झूठ, छल-कपट, मिथ्या-आचरण, भ्रष्टाचार में जीते हैं हम किसी को क्या
बेवजह जागने की आदत नहीं हमारी, जो भी हो रहा, होता रहे हमें क्या
आराम से खाते-पीते हैं, मज़े से जीते हैं, दुनिया लड़-मर रही, मरती रहे
लहर है तो, सत्य, अहिंसा, प्रेम पर लिखने को जी चाहता है तुम्हें क्या