बुढ़िया सठिया गई है
प्रेम मनुहार की बात करती हूं वो मुझे दवाईयों का बक्सा दिखाता है।
तीज त्योहार पर सोलह श्रृंगार करती हूं वो मुझे आईना दिखाता है।
याद दिलाती हूं वो यौवन के दिन,छिप छिप कर मिलना,रूठना-मनाना ।
कहता है बुढ़िया सठिया गई है, पागलखाने का रास्ता दिखाता है।