बनी-बनाई धारणाएं लिए घूमते हैं

ऐसा क्यों है
कि कुछ बातों के लिए हम
बनी-बनाई धारणाएं लिए घूमते हैं।

बेचारा,
न जाने कैसी बोतल थी हाथ में
और क्या था गिलास में।
बस गिरा देखा
या कहूं
फि़सला देखा
हमने मान लिया कि दारू है।
सोचा नहीं एक बार
कि शायद सामने खड़े
दादाजी की दवा-दारू ही हो।
लीजिए
फिर दारू शब्द आ गया।

और यह भी तो हो सकता है
कि बेटा बेचारा
पिताजी की
बोतल छीनकर भागा हो
अब तो बस कर इस बुढ़ापे में बुढ़उ
क्यों अपनी जान लेने पर तुला है।

बेचारा गिर गया
और बापजी बोले
देखा, आया मजा़ ।
तू उठता रह
मैं नई लेने चला।