अपने बारे में क्या लिखूं। डा. रघुवीर सहाय के शब्दों में ‘‘बहुत बोलने वाली, बहुत खाने वाली, बहुत सोने वाली’’ किन्तु मेरी रचनाएं बहुत बोलने वालीं, बहुत बोलने वालीं, बहुत बोलने वालीं
कुन्दन अब रहा किसका मन
बहके-बहके हैं यहां कदम
न स्वर्ण रहा न स्वर्णाभा रही
पारस पत्थर करता है क्रन्दन