कुछ छूट गया जीवन में
गांव तक कौन सी राह जाती है कभी देखी नहीं मैंने
वह तरूवर, कुंआ, बाग-बगीचे, पनघट, देखे नहीं मैंने
पीपल की छाया, चौपालों का जमघट, नानी-दादी के किस्से
लगता है कुछ छूट गया जीवन में, जो पाया नहीं मैंने
गांव तक कौन सी राह जाती है कभी देखी नहीं मैंने
वह तरूवर, कुंआ, बाग-बगीचे, पनघट, देखे नहीं मैंने
पीपल की छाया, चौपालों का जमघट, नानी-दादी के किस्से
लगता है कुछ छूट गया जीवन में, जो पाया नहीं मैंने