किससे क्या कहें हम
लाशों पर शहर नहीं बसते
बाले-बरछियों से घर नहीं बनते
फ़सलों में पानी की ही तरावट चाहिए
रक्त से बीज नहीं पनपते।
कब कौन किसको समझाये यह
हमें तो यह भी नहीं पता
कि कौन शत्रु
और कौन मित्र बनकर लड़ते।
जिनसे आज करते हैं मैत्री समझौता
वे ही कल शत्रु बन बरसते।
अस्त्रों-शस्त्रों से घरों की सजावट नहीं होती
और दूसरों के कंधों पर दुनिया नही चलती।