कितने सबक देती है ज़िन्दगी

भाग-दौड़ में लगी है ज़िन्दगी।

खेल-खेल में रमी है ज़िन्दगी।

धूल-मिट्टी में आनन्द देती

मज़े-मजे़ से बीतती है ज़िन्दगी।

तू हाथ बढ़ा, मैं हाथ थामूँ,

धक्का-मुक्की, उठन-उठाई

नाम तेरा यही है ज़िन्दगी।

आगे-पीछे देखकर चलना

बायें-दायें, सीधे-सीधे

या पलट-पलटकर,

सम्हल-सम्हलकर।

तब भी न जाने

कितने सबक देती है ज़िन्दगी।