आंखें बोलतीं

आंखों से झरे

तुम समझे आंसू

मोती थे खरे

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आंखें बोलतीं

कई किस्से खोलतीं

तुम अज्ञानी

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बोलती आंखें

नहीं सुनते तुम

हवा में स्वर

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खुली थीं आंखें

पलक झपकती

दुनिया न्यारी

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बंद आंखों से

सपने देखे कैसे

कौन समझे।