शून्य दिखलाई देता है

न जाने कैसी सोच हो गई

अपने भी अब

अपनों-से न लगते हैं।

नींद नहीं आती रातों को

सोच-सोचकर

मन भटके है।

ऐसी क्या बात हो गई,

अब भीड़ भरे रिश्तों में

शून्य दिखलाई देता है

अवसर पर कोई नहीं मिलता,

 सब भागे-दौड़े दिखते हैं।