शब्द लड़खड़ा रहे
रात भीगी-भीगी
पत्तों पर बूंदें
सिहरी-सिहरी
चांद-तारे सुप्त-से
बादलों में रोशनी घिरी
खिड़कियों पर कोहरा
मन पर शीत का पहरा
शब्द लड़खड़ा रहे
बातें मन में दबीं।
रात भीगी-भीगी
पत्तों पर बूंदें
सिहरी-सिहरी
चांद-तारे सुप्त-से
बादलों में रोशनी घिरी
खिड़कियों पर कोहरा
मन पर शीत का पहरा
शब्द लड़खड़ा रहे
बातें मन में दबीं।