दुनिया कहती है

काश !

लौट आये

अट्ठाहरवीं शती ।

गोबर सानती,

उपले बनाती,

लकडि़या चुन,ती

वन-वन घूमती ।

पांच हाथ घूंघट ओढ़ती,

गागर उठा कुंएं से पानी लाती,

बस रोटियां बनाती,

खिलाती और खाती।

रोटियां खाती, खिलाती और बनाती।

सच ! कितनी सही होती जि़न्‍दगी।

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दुनिया कहती है

बाकी सब तो मर्दों के काम हैं।