आंसुओं का क्या
भीग जाने दो आज
चेहरे को आंसुओं से,
भीतर जमी गर्द
धुल जायेगी।
नहीं चाहती मैं
कोई
उस गर्द को
छूने की कोशिश करे,
कोई पढ़े
उसके धुंधले हो चुके शब्द।
नहीं चाहती मैं
कोई कहानियां लिखे।
आंसुओं का क्या
वे तो
सुख-दुख दोनों में
बहते हैं
कौन समझता है
उनका अर्थ यहां।