जल-प्रपात सूख रहे हैं
जल-प्रपात सूख रहे हैं, बादल हमसे रूठ रहे हैं
धरती प्यासी, मन भी प्यासा, प्रेम-रस हम ढूॅंढ रहे हैं
कहीं जल-प्लावन होगा, कहीं धरा सूखे से उलझ रही
आॅंधी-पानी कुछ भी बरसे, नदियों के तट टूट रहे हैं
जल-प्रपात सूख रहे हैं, बादल हमसे रूठ रहे हैं
धरती प्यासी, मन भी प्यासा, प्रेम-रस हम ढूॅंढ रहे हैं
कहीं जल-प्लावन होगा, कहीं धरा सूखे से उलझ रही
आॅंधी-पानी कुछ भी बरसे, नदियों के तट टूट रहे हैं