प्रतीक्षा में
बाट में
बैठी हूॅं तुम्हारी
उस दिन से ही
जिस दिन
छोड़ गये थे तुम मुझे
चुनरिया, चूड़ा
पहनाकर
मेंहदी, बिंदिया लगाये थे।
बिरहन का यह चोला पहनाकर
घट भरकर लाये थे।
तुम मुझे इस रूप में देखकर
बहुत मन भाये थे।
फिर शहर चले गये तुम।
लौटने का वादा करके
मन सावन था
पतझड़ हो गया।
तुम न आये।
जियरा न लागे तुम बिन
यूॅं ही बैठी तुम्हारी बिरहन
तुम्हारी प्रतीक्षा में
कभी तो लौटकर आओगे तुम।