कहानी टूटे-बिखरे रिश्तों की
कुछ यादें,
कुछ बातें चुभती हैं
शीशे की किरचों-सी।
रिसता है रक्त, धीरे-धीरे।
दाग छोड़ जाता है।
सुना है मैंने
खुरच कर नमक डालने से
खुल जाते हैं ऐसे घाव।
किरचें छिटक जाती हैं।
अलग-से दिखाई देने लगती हैं।
घाव की मरहम-पट्टी को भूलकर,
हम अक्सर उन किरचों को
समेटने की कोशिश करते हैं।
कि अरे !
इस छोटे-से टुकड़े ने
इतने गहरे घाव कर दिये थे,
इतना बहा था रक्त।
इतना सहा था दर्द।
और फिर अनजाने में
फिर चुभ जाती हैं वे किरचें।
और यह कहानी
जीवन भर दोहराते रहते हैं हम।
शायद यह कहानी
किरचों की नहीं,
टूटे-बिखरे रिश्तों की है ,
या फिर किरचों की
या फिर टूटे-बिखरे रिश्तों की ।।।।