सीता की वेदना
सीता क्या पूछ पाई कभी विधाता से, मैं ही क्यों माध्यम बनी
मैं थी रावण धाम में फिर मेरे चरित्र पर ही क्यों अॅंगुली उठी
मृग की कामना, द्वार आये साधु का मान मेरा अपराध बन गया
किसी का श्राप, वरदान, मुक्ति क्यों मेरे निष्कासन का द्वार बनी।