हमारी हिन्दी

हिन्दी सबसे प्यारी बोली

कहॉं मान रख पाये हम।

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रोमन में लिखते हिन्दी को

वर्णमाला को भूल रहे हम।

मानक वर्णमाला कहीं खो गई है

42, 48, 52 के चक्कर में फ़ंसे हुए हैं हम।

वैज्ञानिक भाषा की बात करें तो

बच्चों को क्या समझाएॅं    हम।

उच्चारण, लेखन का सम्बन्ध टूट गया

कुछ भी लिखते

कुछ भी बोल रहे हम।

चन्द्रबिन्दु गायब हो गये

अनुस्वर न जाने कहॉं खो गये

उच्चारण को भ्रष्ट किया,

सरलता के नाम पर

शुद्ध शब्दों से भाग रहे हम।

अंग्रेज़ी, उर्दू, फ़ारसी को

सरल कहकर हिन्दी को

नकार रहे हम।

शिक्षा से दूर हो गई,

माध्यम भी न रह गई,

न जाने किस विवशता में

हिन्दी को ढो रहे हैं हम।

ऑनलाईन अंग्रेज़ी के माध्यम से

हिन्दी लिख-पढ़ सीख रहे हैं हम।

अंग्रेज़ी में अंग्रेज़ी  लिखकर

उससे हिन्दी मॉंग रहे हम।

अनुवाद की भाषा बनकर रह गई है

इंग्लिश-विंग्लिश लिखकर

गूगल से  कहते हिन्दी दे दो,

हिन्दी दे दो।

फिर कहते हैं

हिन्दी सबसे प्यारी बोली

हिन्दी सबसे न्यारी बोली।