सपने थे अपने थे
कागज की कश्ती में कुछ सपने थे कुछ अपने थे कुछ सच्चे थे कुछ झूठे थे
कुछ डोले थे कुछ उलझ गये कुछ बिखर गये, कुछ निखर गये कुछ रूठे थे
कुछ पानी में छोड़ दिये, कुछ को गठरी में बांध लिया, कुछ आॅंखों में रह गये
हिचकोले खाती कश्ती में तिरते-तिरते समझा जो भी थे, सब अपने थे, मीठे थे