हे सागर, रास्ता दो मुझे
हे सागर, रास्ता दो मुझे
कहा था सतयुग में राम ने।
सागर की राह से
एक युद्ध की भूमिका थी।
कारण कोई भी रहा हो
युद्ध सुनिश्चित था।
किन्तु फिर भी
सागर का
एक प्रयास
शायद
युद्ध को रोकने का,
और इसी कारण
मना कर दिया था
राम को राह देने के लिए,
राम की शक्ति को
जानते हुए भी।
शायद वह भी चाहता था
कि युद्ध न हो।
युद्ध राम-रावण का हो
अथवा कौरवों-पाण्डवों का
विनाश तो होता ही है
जिसे युगों-युगों तक
भोगती हैं
अगली पीढ़ियां।
युद्ध कोई भी हो,
अपनों से
या परायों से
एक बार तो
रोकने की कोशिश
करनी ही चाहिए।