नया-पुराना

कुछ अलग-सा ही होता है

दिसम्बर।

पहले तो

बहुत प्रतीक्षा करवाता है

और आते ही

चलने की बात

करने लगता है।

कहता है

पुराना जायेगा तभी तो

कुछ नया आयेगा।

और जब नया आयेगा

तो कुछ पुराना जायेगा।

लेकिन

नये और पुराने के

बीच की दूरियॉं

पाटने में ही

ज़िन्दगी निकल जाती है

और हम नासमझ

बस हिसाब लगाते रह जाते हैं।

चलिए, आज

नये-पुराने को छोड़

बस आज की ही बात करते हैं

और आनन्द मनाते हैं।