अपने बारे में क्या लिखूं। डा. रघुवीर सहाय के शब्दों में ‘‘बहुत बोलने वाली, बहुत खाने वाली, बहुत सोने वाली’’ किन्तु मेरी रचनाएं बहुत बोलने वालीं, बहुत बोलने वालीं, बहुत बोलने वालीं
यूं ही चलता रहता है जीवन
कभी रोता कभी हंसता है मन
राहों में जब आती हैं बाधाएं
मन करता है लौट आये बचपन