कोई फ़र्क नहीं पड़ता

कुछ समस्याओं पर

बात करने से कतराते हैं हम

समझ नहीं पाते

कहाॅं से शुरु करें

और कहाॅं खतम।

जिन्हें बात करनी चाहिए

वे पूल में ठण्डक ले रहे हैं

सुबह-शाम

तरह-तरह के पेय से

गला तर कर रहे हैं।

वादों की, बातों की

उड़ाने भर रहे हैं।

सुरक्षा कवच इतना बड़ा है

कि इन बाल्टियों की खनक

उनके कानों तक पहुंचती नहीं।

बूॅंद-बूॅंद पानी की कमी

उन्हें खलती नहीं।

उनकी योजनाओं में

बड़े-बड़े बांध हैं,

पर्यटन के लिए

लबालब झीलें हैं।

वे नहीं जानते

प्यास क्या होती है

पानी कैसे भरा जाता है

बाल्टियाॅं, पतीले, बर्तन

क्या होते हैं।

भीड़ का अर्थ नहीं जानते वे।

घूॅंट-घूॅंट पानी की कीमत

नहीं समझते वे।

वैसे भी

हर साल आती हैं ये समस्याएॅं

कभी आगे, कभी पीछे

चलती हैं ये समस्याएॅं

मौसम बदलता है

लोग भूल जाते हैं।

फिर कोई नई समस्या आती है

और लोग

फिर वहीं आकर खड़े हो जाते हैं।

सिलसिला चला रहता है

कोई फ़र्क नहीं पड़ता

कौन जीता है

कौन मरता है।