नये नये की आस में
नये नये की आस में क्यों भटकता है मन
न जाने क्यों इधर-उधर अटकता है मन
जो मिला है उसे तो जी भर जी ले प्यारे
क्यों औरों के सुख देखकर भटकता है मन
नये नये की आस में क्यों भटकता है मन
न जाने क्यों इधर-उधर अटकता है मन
जो मिला है उसे तो जी भर जी ले प्यारे
क्यों औरों के सुख देखकर भटकता है मन