अपने केश संवरवा लेना
बंसी बजाना ठीक था
रास रचाना ठीक था
गैया चराना ठीक था
माखन खाना,
ग्वाल-बाल संग
वन-वन जाना ठीक था।
यशोदा मैया
गूँथती थी केश मेरे
उसको सताना ठीक था।
कुरुक्षेत्र की यादें
अब तक मन को
मथती हैं
बड़े-बड़े महारथियों की
कथाएँ अब तक
मन में सजती हैं।
पर राधे !
अब मुझको यह भी करना होगा!!
अब मुझको
राजनीति छोड़
तुम्हारी लटों में उलझना होगा!!!
न न न, मैं नहीं अब आने वाला
तेरी उलझी लटें
मैं न सुलझाने वाला।
और काम भी करने हैं मुझको
चक्र चलाना, शंख बजाना,
मथुरा, गोकुल, द्वापर, हस्तिनापुर
कुरुक्षेत्र
न जाने कहाँ-कहाँ मुझको है जाना।
मेरे जाने के बाद
न जाने कितने नये-नये युग आये हैं
जिनका उलटा बजता ढोल
मुझे सताये है।
इन सबको भी ज़रा देख-परख लूँ
और समझ लूँ,
कैसे-कैसे इनको है निपटाना।
फिर अपने घर लौटूँगा
थक गया हूँ
अवतार ले-लेकर
अब मुझको अपने असली रूप में है आना
तुम्हें एक लिंक देता हूँ
पार्लर से किसी को बुलवा लेना
अपने केश संवरवा लेना।