बोलना भूलने लगते  हैं

चुप रहने की

अक्सर

बहुत कीमत चुकानी पड़ती है

जब हम

अपने ही हक़ में

बोलना भूलने लगते  हैं।

केवल

औरों की बात

सुनने लगते हैं।

धीरे-धीरे हमारी सोच

हमारी समझ कुंद होने लगती है

और जिह्वा पर

काई लग जाती है

हम औरों के ढंग से जीने लगते हैं

या सच कहूॅं

तो मरने लगते हैं।